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24 Tirthankar ke Argh | 24 Tirthankar Argh | चौबिस तीर्थंकर के अर्घ

Tirthankar Argh | 24 तीर्थंकर के अर्घ | तीर्थंकर अर्घ | Tirthankar Argh

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24 जैन तीर्थंकर के अर्घ in hindi are given here, you just have to scroll down and go below now 👇

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Tirthankar Chaubisi Argh

24 Tirthankar Argh (24 तीर्थंकर के अर्घ) in Hindi is as given below -

1] श्री आदिनाथ जी अर्घ

शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरु ले मन हर्षाय,

दीप धुप फल अर्घ सुलेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय ।

श्री आदिनाथ के चरण कमल पर बलि बलि जाऊ मन वच काय,

हे करुणानिधि भव दुःख मेटो, यातै मैं पूजों प्रभु पाय ॥

ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्ताये अर्घं निर्वपामिति स्वाहा ।


2] श्री अजितनाथ जी अर्घ

जलफल सब सज्जे, बाजत बज्जै, गुनगनरज्जे मनमज्जे ।

तुअ पदजुगमज्जै सज्जन जज्जै, ते भवभज्जै निजकज्जै ।। 

श्री अजित जिनेशं नुतनाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं ।

मनवांछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजौं ख्याता जग्गेशं ।। 

ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


3] श्री संभवनाथ जी अर्घ

जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप फल अर्घ किया ।

तुमको अरपौं भाव भगतिधर, जै जै जै शिव रमनि पिया।।

संभव जिन के चरन चरचतें, सब आकुलता मिट जावे ।

निज निधि ज्ञान दरश सुख वीरज, निराबाध भविजन पावे।।

ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


4] श्री अभिनंदन नाथ जी अर्घ

अष्ट द्रव्य संवारि सुन्दर सुजस गाय रसाल ही ।

नचत रजत जजौं चरन जुग, नाय नाय सुभाल ही ।। 

कलुषताप निकंद श्रीअभिनन्द, अनुपम चन्द हैं ।

पद वंद वृन्द जजें प्रभू, भवदंद फंद निकंद हैं ।।

ॐ ह्रीं श्रीअभिनन्दन जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


5] श्री सुमतिनाथ जी अर्घ

जल चंदन तंदुल प्रसून चरु दीप धूप फल सकल मिलाय ।

नाचि राचि शिरनाय समरचौं, जय जय जय 2 जिनराय।। 

हरिहर वंदित पापनिकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवनके राय ।

तुम पद पद्म सद्म शिवदायक, जजत मुदितमन उदित सुभाय।।

ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


6] श्री पद्मप्रभु जी अर्घ

जल फल आदि मिलाय गाय गुन, भगति भाव उमगाय ।

जजौं तुमहिं शिवतिय वर जिनवर, आवागमन मिटाय । 

मन वचन तन त्रयधार देत ही, जनम-जरा-मृतु जाय ।

पूजौं भाव सों, श्री पदमनाथ पद-सार, पूजौं भाव सों ।।

ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


7] श्री सुपार्श्वनाथ जी अर्घ

आठों दरब साजि गुनगाय, नाचत राचत भगति बढ़ाय ।

दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ।। 

तुम पद पूजौं मनवचकाय, देव सुपारस शिवपुरराय ।

दया निधि हो, जय जगबंधु दया निधि हो ।।

ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


8] श्री चंद्रप्रभु जी अर्घ

सजि आठों दरब पुनीत, आठों अंग नमौं ।

पूजौं अष्टम जिन मीत, अष्टम अवनि गमौं ।।

श्री चंद्रनाथ दुति चंद, चरनन चंद लगैं ।

मन वच तन जजत अमंद-आतम-जोति जगे ।

ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


9] श्री पुष्पदंत जी अर्घ

जल फल सकल मिलाय मनोहर, मनवचतन हुलसाय ।

तुम पद पूजौं प्रीति लाय के, जय जय त्रिभुवनराय ।।

मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय, मेरी अरज सुनीजे ।।

ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


10] श्री शीतलनाथ जी अर्घ

शुभ श्री-फलादि वसु प्रासुक द्रव्य साजे ।

नाचे रचे मचत बज्जत सज्ज बाजे ।। 

रागादिदोष मल मर्द्दन हेतु येवा ।

चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ।।

ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


11] श्री श्रेयांसनाथ जी अर्घ

जलमलय तंदुल सुमनचरु अरु दीप धूप फलावली ।

करि अरघ चरचौं चरन जुग प्रभु मोहि तार उतावली ।।

श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवन वन्द आनन्दकन्द हैं ।

दुखदंद फंद निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं ।।

ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


12] श्री वासुपूज्य जी अर्घ

जल फल दरव मिलाय गाय गुन, आठों अंग नमाई ।

शिवपदराज हेत हे श्रीपति! निकट धरौं यह लाई । ।

वासुपूज्य वसुपूज-तनुज-पद, वासव सेवत आई ।

बाल ब्रह्मचारी लखि जिन को, शिव तिय सनमुख धाई ।।

ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


13] श्री विमलनाथ जी अर्घ

आठों दरब संवार, मनसुखदायक पावने ।

जजौं अरघ भर थार, विमल विमल शिवतिय रमण ।।

ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


14] श्री अनंतनाथ जी अर्घ

शुचि नीर चन्दन शालिशंदन, सुमन चरु दीवा धरौं ।

अरु धूप फल जुत अरघ करि, करजोरजुग विनति करौं ।।

जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो ।

शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं, भ्रंत वन्त नशावनो ।।

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


15] श्री धर्मनाथ जी अर्घ

आठों दरब साज शुचि चितहर, हरषि हरषि गुनगाई ।

बाजत दृमदृम दृम मृदंग गत, नाचत ता थेई थाई ।।

परमधरम-शम-रमन धरम-जिन, अशरन शरन निहारी ।

पूजौं पाय गाय गुन सुन्दर नाचौं दे दे तारी ।।

ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


16] श्री शांतिनाथ जी अर्घ

वसु द्रव्य सँवारी, तुम ढिग धारी, आनन्दकारी, दृग-प्यारी ।

तुम हो भव तारी, करुनाधारी, या तें थारी शरनारी ।।

श्री शान्ति जिनेशं, नुतशक्रेशं, वृषचक्रेशं चक्रेशं ।

हनि अरिचक्रेशं, हे गुनधेशं, दयाऽमृतेशं, मक्रेशं ।।

ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


17] श्री कुंथुनाथ जी अर्घ

जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप लेरी ।

फलजुत जनन करौं मन सुख धरि, हरो जगत फेरी ।।

कुंथु सुन अरज दास केरी, नाथ सुन अरज दासकेरी ।

भवसिन्धु पर्यो हौं नाथ, निकारो बांह पकर मेरी ।।

ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


18] श्री अरहनाथ जी अर्घ

सुचि स्वच्छ पटीरं, गंधगहीरं, तंदुलशीरं, पुष्प-चरुं ।

वर दीपं धूपं, आनंदरुपं, ले फल भूपं, अर्घ करुं ।।

प्रभु दीन दयालं, अरिकुल कालं, विरद विशालं सुकुमालं ।

हरि मम जंजालं, हे जगपालं, अरगुन मालं, वरभालं ।।

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


19] श्री मल्लिनाथ जी अर्घ

जल फल अरघ मिलाय गाय गुन, पूजौं भगति बढ़ाई ।

शिवपदराज हेत हे श्रीधर, शरन गहो मैं आई ।।

राग-दोष-मद-मोह हरन को, तुम ही हो वरवीरा ।

यातें शरन गही जगपतिजी, वेगि हरो भवपीरा ।।

ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


20] श्री मुनिसुव्रतनाथ जी अर्घ

जलगंध आदि मिलाय आठों दरब अरघ सजौं वरौं ।

पूजौं चरन रज भगतिजुत, जातें जगत सागर तरौं ।।

शिवसाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगुन माल हैं ।

तसु चरन आनन्दभरन तारन तरन, विरद विशाल हैं ।।

ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


21] श्री नमिनाथ जी अर्घ

जल फलादि मिलाय मनोहरं, 

अरघ धारत ही भवभय हरं ।

जजतु हौं नमि के गुण गाय के, 

जुगपदाम्बुज प्रीति लगाय के ।।

ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


22] श्री नेमिनाथ जी अर्घ

जल फल आदि साज शुचि लीने, आठों दरब मिलाय ।

अष्टम छिति के राज कारन को, जजौं अंग वसु नाय ।।

दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के । 

ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


23] श्री पार्श्वनाथ जी अर्घ

नीर गंध अक्षतान, पुष्प चारु लीजिये ।

दीप धूप श्रीफलादि, अर्घ तैं जजीजिये ।।

पार्श्वनाथ देव सेव, आपकी करुं सदा ।

दीजिए निवास मोक्ष, भूलिये नहीं कदा ।।

ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।


24] श्री महावीर स्वामी जी अर्घ

जल फल वसु सजि हिम थार, तन मन मोद धरौं ।

गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरौं ।।

श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो ।

जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो ।।

ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

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