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Shri Ajitnath Chalisa Lyrics | Ajitnath Chalisa | अजितनाथ चालीसा lyrics

Shri Ajitnath Chalisa Lyrics | अजितनाथ चालीसा | Ajitnath Chalisa Lyrics in Hindi 

Full Ajitnath Chalisa in Hindi with play able and Download able Audio file and in written form Bhagwan Ajitnath Chalisa in Hindi Lyrics given below -
Ajitnath Chalisa Lyrics, अजितनाथ चालीसा

Ajitnath Chalisa Play able  and Download able Audio file -
Ajitnath Chalisa Lyrics in Hindi -

( अजितनाथ चालीसा प्रारंभ )

श्री आदिनाथ को शिश नवा कर,
माता सरस्वती को ध्याय ।
शुरू करूँ श्री अजितनाथ का,
चालीसास्व – सुखदाय ।।

जय श्री अजितनाथ जिनराज । 
पावन चिह्न धरे गजराज ।।
नगर अयोध्या करते राज । 
जितराज नामक महाराज ।।

विजयसेना उनकी महारानी । 
देखे सोलह स्वप्न ललामी ।।
दिव्य विमान विजय से चयकर । 
जननी उदर बसे प्रभु आकर ।।

शुक्ला दशमी माघ मास की । 
जन्म जयन्ती अजित नाथ की ।।
इन्द्र प्रभु को शीशधार कर । 
गए सुमेरू हर्षित हो कर ।।

नीर शीर सागर से लाकर ।
न्हवन करें भक्ति में भरकर ।।
वस्त्राभूषण दिव्य पहनाए । 
वापस लोट अयोध्या आए ।।

अजित नाथ की शोभा न्यारी । 
वर्ण स्वर्ण सम कान्तिधारी ।।
बीता बचपन जब हितकारी । 
हुआ ब्याह तब मंगलकारी ।।

कर्मबन्ध नही हो भोगो में । 
अन्तदृष्टि थी योगो में ।।
चंचल चपला देखी नभ में । 
हुआ वैराग्य निरन्तर मन में ।।

राजपाट निज सुत को देकर । 
हुए दिगम्बर दीक्षा लेकर ।।
छः दिन बाद हुआ आहार । 
करे श्रेष्ठि ब्रह्मा सत्कार ।।

किये पंच अचरज देवो ने । 
पुण्योपार्जन किया सभी ने ।।
बारह वर्ष तपस्या कीनी । 
दिव्यज्ञान की सिद्धि नवीनी ।।

धनपति ने इन्द्राज्ञा पाकर । 
रच दिया समोशरण हर्षाकर ।।
सभा विशाल लगी जिनवर की । 
दिव्यध्वनि खिरती प्रभुवर की ।।

वाद विवाद मिटाने हेतु । 
अनेकांत का बाँधा सेतु ।।
है सापेक्ष यहा सब तत्व । 
अन्योन्याश्रित है उन सत्व ।।

सब जिवो में है जो आतम । 
वे भी हो सक्ते शुद्धात्म ।।
ध्यान अग्नि का ताप मिले जब । 
केवल ज्ञान की की ज्योति जले तब ।।

मोक्ष मार्ग तो बहुत सरल है । 
लेकिन राहीहुए विरल है ।।
हीरा तो सब ले नही पावे । 
सब्जी भाजी भीङ धरावे ।।

दिव्यध्वनि सुन कर जिनवर की । 
खिली कली जन जन के मन की ।।
प्राप्ति कर सम्यग्दर्शन की । 
बगिया महकी भव्य जनो की ।।

हिंसक पशु भी समता धारे । 
जन्म जन्म का का वैर निवारे ।।
पूर्ण प्रभावना हुई धर्म की । 
भावना शुद्ध हुई भविजन की ।।

दुर दुर तक हुआ विहार । 
सदाचार का हुआ प्रचार ।।
एक माह की उम्र रही जब । 
गए शिखर सम्मेद प्रभु तब ।।

अखण्ङ मौन मुद्रा की धारण । 
कर्म अघाती हेतु निवारण ।।
शुक्ल ध्यान का हुआ प्रताप । 
लोक शिखर पर पहुँचे आप ।।
सिद्धवर कुट की भारी महिमा । 
गाते सब प्रभु के गुण – गरिमा ।।

विजित किए श्री अजित ने, अष्ट कर्म बलवान ।।
निहित आत्मगुण अमित है, अरूणा सुख की खान ।।
( समाप्त )

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