Pushpadant Chalisa | Pushpadant Bhagwan Chalisa | पुष्पदंत भगवान का चालीसा
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पुष्पदंत चालीसा |
Pushpadant Bhagwan Chalisa full lyrics in Hindi are as given below -
( श्री पुष्पदंत चालीसा प्रारंभ )
दोहा -
ऋषभदेव को आदि ले, चन्द्रप्रभू पर्यंत।
आठ जिनेश्वर को नमूँ, हो सुख-शान्ति अनंत।।१३।।
पुष्पदंत भगवान के, चालीसा का पाठ।
पढ़ने वालों को मिले, शिवपथ का आधार।।२।।
विद्यादेवी को नमूँ, होवे मति-श्रुतज्ञान।
लिखने की शक्ती मिले, दूर होय अज्ञान।।२।।
चौपाई -
पुष्पदन्त तीर्थंकर प्यारे, काकन्दी के राजदुलारे।।१।।
पिता कहे सुग्रीव तुम्हारे, जयरामा के नयन सितारे।।२।।
तुम नवमें तीर्थंकर स्वामी, तुमको कहते अन्तरयामी।।३।।
कुन्दपुष्प सम देहकान्ति है, दर्शन से मिटती अशांति है।।४।।
पुरुष शलाका त्रेसठ होते, से सब निश्चित शिवपद पाते।।५।।
कोई इक या दो ही भव लें, कोई अधिक जनम ले लेते।।६।।
सुनो शलाका पुरुष नाम तुम, इनको रखना सदा याद तुम।।७।।
चौबिस तीर्थंकर अरु बारह-चक्रवर्ती होते हैं सुन्दर।।८।।
नौ बलभद्र हैं, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण सब मिलकर।।९।।
ये त्रेसठ की संख्या होती, इनकी भक्ती शिवपद देती।।१०।।
पुष्पदंत जी इनमें से ही, एक शलाका पुरुष हुए हैं।।११।।
इनने पूरब भव में सोलह-भावनाओं का किया था चिन्तन।।१२।।
तभी इन्हें तीर्थंकर प्रकृती, बंध हुई जो पुण्य की राशी।।१३।।
वे प्राणत नामक विमान में, दिव्यसुखों को भोग रहे थे।।१४।।
पुन: वहाँ से च्युत हो करके, आए निज माता के गर्भ में।।१५।।
तीर्थंकर की माता जैसा, पुण्य नहीं होता है किसी का।।१६।।
एक बार ही गर्भ धरें वो, भवसागर से शीघ्र तिरें वो।।१७।।
फाल्गुन वदि नवमी की शुभ तिथि, गर्भकल्याणक से पावन भी।।१८।।
पुन: हुआ जब जन्म प्रभू का, वह दिन मगसिर एकम् शुक्ला।।१९।।
सुरपति ने जन्माभिषेक कर, किया प्रभू का नामकरण तब।।२०।।
शचि ने सुन्दर वस्त्राभूषण, प्रभू को पहनाए थे उस क्षण।।२१।।
पुन: लाए वापस प्रभुवर को, सौंप दिया था मात-पिता को।।२२।।
धीरे-धीरे पुष्पदंत प्रभु, शैशववय से बालपने में।।२३।।
पुन: हुए जब युवा प्रभू जी, बहुत ही सुन्दर लगते प्रभु जी।।२४।।
मात-पिता का सुख समुद्र तो, बढ़ता रहता देख पुत्र को।।२५।।
राज्यकार्य में लिप्त प्रभू को, इक दिन उल्कापात देखकर।।२६।।
मन वैरागय समाया ऐसा, वैभव सब तिनके सम छोड़ा।।२७।।
लौकान्तिक सुर ने स्तुति की, त्यागमार्ग की अनुशंसा की।।२८।।
ये लौकान्तिक देव नियम से, एक भवावतारि होते हैं।।२९।।
हम भी जाएँ जब स्वगों में, ब्रह्मस्वर्ग में लौकान्तिक हों।।३०।।
ये ही इच्छा मन में रखना, संयम का परिपालन करना।।३१।।
मगसिर शुक्ला एकम् के दिन, पुष्पदंत प्रभु ने दीक्षा ली।।३२।।
पुन: घातिया कर्म नाशकर, केवलज्ञानी सूर्य बने प्रभु।।३३।
सबको ज्ञानप्रकाश दिया था, भव्यों को सन्मार्ग दिया था।।३४।।
भादों शुक्ला अष्टमि को प्रभु, पहुँच गए सम्मेदशिखर पर।।३५।।
कर्म अघाती छूट गए तब, भवबंधन से मुक्त हुए प्रभु।।३६।।
बन गए सिद्धिप्रिया के स्वामी, नित्य-निरंजन अरु निष्कामी।।३७।।
चार शतक कर ऊँचा तन था, मगरमच्छ था चिन्ह प्रभू का।।३८।।
प्रभु दो हमको ऐसी शक्ती, करते रहें तुम्हारी भक्ती।।३९।।
जब तक श्वांस रहे मुझ तन में, रहे ‘‘सारिका’’ मन तुम पद में।।४०।।
शंभु छंद -
यह पुष्पदंत प्रभु का चालीसा, पढ़ो-पढ़ाओ भव्यात्मन्।
निश्चित ही इक दिन हो जावेगी, आत्मा स्वस्थ तथा पावन।।
कहते हैं प्रभु की भक्ती से, तप की शक्ती मिल जाती है।
पुन: भक्ति की युक्ति मिले, फिर मुक्ती भी मिल जाती है।।१।।
इस युग में इक सिद्धान्तचक्रेश्वरि-ज्ञानमती माताजी हैं।
उनकी शिष्या इक रत्नपुंज आर्यिका चन्दनामति जी हैं।।
दी मुझे प्रेरणा इसीलिए मैंने यह पाठ लिखा रुचि से।
सुख-शान्ति-समृद्धी-धन-सम्पति, मिल जावे इसको पढ़ने से।।२।।
( समाप्त )