श्री शीतलनाथ चालीसा | Shitalnath Chalisa | Shitalnath Bhagwan Chalisa
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श्री शीतलनाथ चालीसा |
शीतलनाथ भगवान चालीसा full lyrics in Hindi is as given below -
( श्री शीतलनाथ चालीसा प्रारंभ )
दोहा -
श्री शीतल तीर्थेश को, जो वंदे कर जोड़।उसका मन शीतल बने, वच भी शीतल होय।।१।।
रोग-शोक का नाश हो, तन शीतल हो जाए।
फिर क्रमश: त्रैलोक्य में, शीतलता आ जाए।।२।।
कल्पवृक्ष के चिन्ह से, सहित आप भगवान।
इसीलिए इच्छा सभी, पूरी हों तुम पास।।३।।
चौपाई -
एक बार इक शिष्य ने गुरु से, पूछा सबसे शीतल क्या है ?।।१।।गुरु ने जो बतलाया उसको, उसे ध्यान से तुम भी सुन लो।।२।।
हे भव्यों! संसार के अंदर, चन्दन नहिं है सबसे शीतल।।३।।
चन्द्ररश्मियाँ शीतल नहिं हैं, नहिं शीतल है गंगा का जल।।४।।
बसरे के मोती की माला, उसमें भी नहिं है शीतलता।।५।।
सबसे शीतल हैं इस जग में, वचन अहो! श्री शीतल जिन के।।६।।
जो त्रिभुवन के दु:खताप को, नष्ट करें अपने प्रताप से।।७।।
ऐसे शीतलनाथ प्रभू ने, जन्म लिया था भद्रपुरी में।।८।।
भद्दिलपुर भी कहते उसको, नमन करें उस जन्मभूमि को।।९।।
पिता तुम्हारे दृढ़रथ राजा, पुण्यशालिनी मात सुनन्दा।।१०।।
चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथी तो, प्रभु की गर्भकल्याणक तिथि थी।।११।।
पुन: माघ कृष्णा बारस में, प्रभु ने जन्म लिया धरती पर।।१२।।
मध्यलोक में खुशियाँ छार्इं, स्वर्गलोक में बजी बधाई।।१३।।
नरकों में भी कुछ क्षण भव्यों!, शान्ति मिली थी नारकियों को।।१४।।
दूज चन्द्रमा के समान ही, बढ़ते रहते शीतल प्रभु जी।।१५।।
युवा अवस्था प्राप्त हुई जब, पितु ने राज्यभार सौंपा तब।।१६।।
उनके शासनकाल में भैया! अमन-चैन की होती वर्षा।।१७।।
किसी को कोई कष्ट नहीं था, दुख-दारिद्र वहाँ पर नहिं था।।१८।।
इक दिन शीतलनाथ जिनेश्वर, वनविहार करने निकले जब।।१९।।
मार्ग में तब हिमनाश देखकर, समझ गए यह जग है नश्वर।।२०।।
तत्क्षण सब कुछ त्याग दिया था, दीक्षा को स्वीकार किया था।।२१।।
इसीलिए कहते हैं भव्यों! यदि संसार में सुख होता तो!।।२२।।
क्यों तीर्थंकर उसको तजते!, क्यों संयम को धारण करते ?।।२३।।
जीवन का बस सार यही है, सच्चा सुख तो त्याग में ही है।।२४।।
संयम और संयमीजन की, निन्दा नहीं कभी करना तुम।।२५।।
संयम चिन्तामणी रत्न है, इससे मिल जाता सब कुछ है।।२६।।
शीतल प्रभु ने भी संयम को, धारा माघ कृष्ण बारस को।।२७।।
दीक्षा लेकर खूब तपस्या, करके वुंâदन कर ली काया।।२८।।
पुन: पौष कृष्णा चौदस को, प्रगटा केवलज्ञान प्रभू के।।२९।।
शुक्लध्यान को प्राप्त प्रभू जी, बने त्रिलोकी सूर्य प्रभू जी।।३०।।
जिस दिन शिवपुर पहुँचे प्रभु जी, उस दिन आश्विन सुदि अष्टमि थी।।३१।।
शीतल प्रभु जी सिद्धशिला पर, फिर भी शीतलता जग भर में।।३२।।
तीन शतक अरु साठ हाथ का, शीतल जिनवर का शरीर था।।३३।।
आयू एक लाख पूरब थी, स्वर्णिम प्रभु की देहकान्ति थी।।३४।।
कल्पतरू के चिन्ह सहित प्रभु, कल्पवृक्ष सम फल भी देते।।३५।।
एक कृपा बस मुझ पर करिए, मेरा तन-मन शीतल करिए।।३६।।
इस जग में जितने हैं प्राणी, उनको सुखमय कर दो प्रभु जी।।३७।।
उसमें ही मेरा नम्बर भी, आ जाएगा प्रभो! स्वयं ही।।३८।।
लेकिन सुख ऐसा ही देना, जिसके बाद कभी दुख हो ना।।३९।।
शान्ती ऐसी मिले ‘‘सारिका’’, नहीं माँगना पड़े दुबारा।।४०।।
शंभु छंद -
श्री शीतल जिनराज का, यह चालीसा पाठ।
चालिस दिन तक जो पढ़े, नित चालीसहिं बार।।१।।
उनके सब दुख-ताप अरु, रोग-शोक नश जाएँ।
मन-वच-काय पवित्र हों, शीतलता आ जाए।।२।।
सदी बीसवीं की प्रथम-ब्रह्मचारिणी मात।
उनकी शिष्या श्रुतमणि, चन्दनामति मात।।३।।
पाकर उनकी प्रेरणा, मैंने लिखा ये पाठ।
इसको पढ़कर प्राप्त हों, जग के सब सुख ठाठ।।४।।
( समाप्त )
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