Shreyansnath Chalisa Lyrics | श्रेयांसनाथ भगवान का चालीसा
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Shreyansnath Chalisa, श्री श्रेयांसनाथ भगवान का चालीसा |
Shreyansnath Prabhu Chalisa full lyrics in Hindi is as given below -
( श्री श्रेयांसनाथ चालीसा प्रारंभ )
दोहा -
युग की आदी में हुए, ऋषभदेव भगवान।
उनके चरणों में करूँ, बारम्बार प्रणाम।।१।।
गौतम गणधर देव को, वंदूँ मन-वच-काय।
उनके जैसी ऋद्धियाँ, हमको भी मिल जाएँ।।२।।
शारद माता को नमूँ, जिनसे मिलता ज्ञान।
लिखने की शक्ती मिले, दूर होय अज्ञान।।३।।
चौपाई -
श्री श्रेयांस जगत के स्वामी, कीर्ति तुम्हारी जग में नामी ।।१।।
तुम हो ग्यारहवें तीर्थंकर, तुम हो प्रभु जग में श्रेयस्कर ।।२।।
जो करते हैं भक्ति तुम्हारी, इच्छा पूरी होती सारी ।।३।।
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, सिंहपुरी नामक नगरी है ।।४।।
वहाँ के राजा विष्णुमित्र थे, वे इक्ष्वाकुवंशि उत्तम थे ।।५।।
वे रानी नंदा के संग में, सुख-वैभव में पूर्ण मगन थे ।।६।।
इक दिन महारानी रात्री में, नित्य की भांती सोई हुई थी ।।७।।
रत्न पलंग पर सोते-सोते, रात्री के आखिरी प्रहर में ।।८।।
महारानी ने सपने देखे, वे पूरे सोलह स्वप्ने थे ।।९।।
उन स्वप्नों के नाम सुनो तुम, यदि संभव हो याद करो तुम ।।१०।।
ऐरावत गज प्रथम स्वप्न में, देखा था जिनवरजननी ने ।।११।।
दूजे में इक वृषभ दिखा था, सिंह तीसरे स्वप्न में देखा ।।१२।।
चौथे स्वप्न में देखी लक्ष्मी, जिनका न्हवन करें दो हाथी ।।१३।।
पंचम में दो मालाएँ थीं, छठे स्वप्न में पूर्ण चन्द्र भी ।।१४।।
उगता हुआ सूर्य फिर देखा, आगे मीन-युगल देखा था ।।१५।।
फिर आगे नवमें सपने में, जल से भरे कलश दो देखे ।।१६।।
कमलों से युत सरवर देखा, यह था दशवाँ स्वप्न मात का ।।१७ं।
आगे ग्यारहवें सपने में, इक समुद्र देखा माता ने ।।१८।।
बारहवें में सिंहासन था, जो रत्नों से जटित अनूठा ।।१९।।
तेरहवें में इक विमान को, देखा आते हुए स्वर्ग से ।।२०।।
पुन: स्वप्न चौदहवाँ देखा, जिसमें इक नागेन्द्र भवन था ।।२१।।
पन्द्रहवें सपने में माँ ने, रत्नों की राशी देखी थी ।।२२।।
अन्तिम सोलहवें सपने में, धुएँ रहित अग्नी देखी थी ।।२३।।
इन स्वप्नों को देख चुकीं जब, माँ की निद्रा भंग हुई तब ।।२४।।
वो तो अतिशय आनन्दित थीं, उत्तर सुनने को आतुर थीं ।।२५।।
प्रात: रानी राजमहल में, पहुँच गर्इं पतिदेव निकट में ।।२६।।
स्वप्नों का फल पूछा पति से, उनने कहा देवि! तुम सुन लो ।।२७।।
बनोगी तुम तीर्थंकर जननी, तुम हो बहुत ही पुण्यशालिनी ।।२८।।
वह दिन ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी का, गर्भकल्याणक प्रभु श्रेयांस का ।।२९।।
पुन: सुनंदा माता ने तब, फाल्गुन कृष्ण एकादशि के दिन ।।३०।।
त्रिभुवनगुरु को जन्म दिया था, तीन ज्ञानधारी वह सुत था ।।३१।।
धीरे-धीरे युवा हुए जब, राज्यकार्य में लिप्त हुए तब ।।३२।।
एक बार श्रेयांसनाथ प्रभु, ऋतु बसंत का परिवर्तन लख ।।३३।।
वैरागी हो सब कुछ छोड़ा, त्यागमार्ग से नाता जोड़ा ।।३४।।
दीक्षा लेकर करी तपस्या, पुन: नशे जब कर्म घातिया ।।३५।।
तब वे केवलज्ञानी हो गए, घट-घट अन्तर्यामी हो गए ।।३६।।
पुन: धर्मवर्षा के द्वारा, भव्य असंख्यों को था तारा ।।३७।।
श्री श्रेयांसनाथ प्रभुवर के, चरणों में मेरा वन्दन है ।।३८।।
प्रभु मेरा वन्दन स्वीकारो, भवसागर से पार उतारो ।।३९।।
अब जग में भ्रमने की इच्छा, पूरी हो गई कहे ‘‘सारिका’’ ।।४०।।
शंभु छंद -
श्री श्रेयांसनाथ का चालीसा, पढ़ना तुम भक्ती से।
दो बार नहीं, दस बार नहीं, चालीस बार पढ़ना इसको।।
यदि चालिस दिन तक पढ़ लोगे, तो जीवन मंगलमय होगा।
यह लालच नहीं है भव्यात्मन्! वास्तव में ऐसा ही होगा।।१।।
इस सदी बीसवीं में इक गणिनी ज्ञानमती माताजी हैं।
उनकी शिष्या ‘मर्यादा-शिष्योत्तमा’’ चन्दनामति जी हैं।।
जब मिली प्रेरणा उनकी तब ही, लिखा ये चालीसा मैंने।
इसको पढ़कर सब कार्योें की, सिद्धी होगी यह निश्चित है।।२।।
( समाप्त )
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