Anantnath Chalisa | Anantnath Bhagwan Chalisa | अनंतनाथ भगवान चालीसा
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अनंतनाथ भगवान चालीसा |
Shri Anantnath Bhagwan Chalisa in Hindi Full lyrics is as given below -
( श्री अनंतनाथ भगवान चालीसा प्रारंभ )
दोहा -
श्री अनन्त जिनराज हैं, गुण अनन्त की खान।
अंतक का भी अंत कर, बने सिद्ध भगवान।।१।।
गुण अनन्त की प्राप्ति हित, करूँ अनन्त प्रणाम।
अनन्त गुणाकर नाथ! तुम, कर दो मम कल्याण।।२।।
विदुषी वागीश्वरी यदि, दे दें आशिर्वाद।
पूरा होवे शीघ्र ही, यह चालीसा पाठ।।३।।
चौपाई -
श्री अनन्तजिनराज आप ही, तीनलोक के शिखामणी हो।।१।।
भव्यजनों के मनकमलों को, सूरज सम विकसित करते हो।।२।।
प्रभु तुम चौदहवें जिनवर हो, चौदह गुण से सहित सिद्ध हो।।३।।
देवोंकृत चौदह अतिशय भी, नाथ! तुम्हारे होते प्रगटित।।४।।
तुम चौदह पूर्वों के ज्ञाता, तुम दर्शन से मिलती साता।।५।।
गुणस्थान होते हैं चौदह, तुम हो प्रभु उनके उपदेशक।।६।।
मार्गणाएँ भी चौदह होतीं, उनके भी उपदेशक प्रभु जी।।७।।
नगरि अयोध्या में तुम जन्मे, पिता तुम्हारे सिंहसेन थे।।८।।
माता जयश्यामा की जय हो, महाभाग्यशाली जननी वो।।९।।
कार्तिक बदि एकम् तिथि आई, गर्भ बसे प्रभु खुशियाँ छाई।।१०।।
ज्येष्ठ बदी बारस में प्रभु ने, जन्म लिया सुर मुकुट हिले थे।।११।।
एक हजार आठ कलशों से, सुरपति न्हवन करें शचि के संग।।१२।।
कलश नहीं हैं छोटे-छोटे, एक कलश का माप सुनो तुम।।१३।।
गहराई है अठ योजन की, मुख पर इक योजन विस्तृत है।।१४।।
मध्य उदर में चउ योजन की, है चौड़ाई एक कलश की।।१५।।
यह तो केवल एक कलश का, ग्रन्थों में विस्तार बताया।।१६।।
ऐसे इक हजार अठ कलशे, सुरपति ढोरें प्रभु मस्तक पे।।१७।।
अन्य असंख्य इन्द्रगण भी तो, करते हैं अभिषेक प्रभू पर।।१८।।
कलश असंख्यातों हो जाते, प्रभु को विचलित नहिं कर पाते।।१९।।
वे तो मेरु सुदर्शन के सम, रहते अडिग-अवंâप निरन्तर।।२०।।
पुन: जन्म अभिषेक पूर्ण कर, स्वर्ग में वापस जाते सुरगण।।२१।।
मात-पिता प्रभु की लीलाएँ, देख-देख पूâले न समाएँ।।२२।।
प्रभु जी अब हो गए युवा थे, राजपाट तब सौंपा पितु ने।।२३।।
राज्यकार्य को करते-करते, पन्द्रह लाख वर्ष बीते थे।।२४।।
तभी एक दिन देखा प्रभु ने, उल्कापात हुआ धरती पे।।२५।।
तत्क्षण वे वैरागी हो गए, तप करने को आतुर हो गए।।२६।।
दीक्षा लेना था स्वीकारा, छोड़ दिया था वैभव सारा।।२७।।
इन्द्र पालकी लेकर आए, उसमें प्रभु जी को बैठाए।।२८।।
लेकर गए सहेतुक वन में, प्रभु बैठे पीपल तरु नीचे।।२९।।
पंचमुष्टि कचलोंच कर लिया, वस्त्राभूषण त्याग कर दिया।।३०।।
नम: सिद्ध कह दीक्षा ले ली, संग में इक हजार राजा भी।।३१।।
पुन: किया आहार प्रभू ने, पंचाश्चर्य किए देवों ने।।३२।।
चैत्र अमावस्या शुभ तिथि में, केवलज्ञान प्रगट हुआ प्रभु के।।३३।।
अंत में श्री सम्मेदशिखर पे, योग निरोध किया प्रभुवर ने।।३४।।
वहाँ परमपद प्राप्त कर लिया, वह थी चैत्र बदी मावस्या।।३५।।
वर्ण आपका सुन्दर इतना, सोने को भी फीका करता।।३६।।
सेही चिन्ह सहित प्रभुवर को, बारम्बार नमन करते हम।।३७।।
अर्जी एक लगानी हमको, अन्तिम पदवी पानी हमको।।३८।।
जब तक अर्जी नहीं लगेगी, तब तक भक्ती बनी रहेगी।।३९।।
अब जो इच्छा होय आपकी, करो ‘‘सारिका’’ नाथ! शीघ्र ही।।४०।।
शंभु छंद -
श्री अनन्त जिनराज के, चालीसा का पाठ।
पढ़ने वालों को मिले, शिवपथ का वरदान।।१।।
गणिनी माता ज्ञानमती की शिष्या हैं प्रधान।
धर्म संवर्धिका चन्दना-मती मात विख्यात।।२।।
दिव्य प्रेरणा जब मिली, तभी रचा यह पाठ।
इसको पढ़कर भव्यजन, सिद्ध करें सब काज।।३।।
यदि जीवन में हो कोई, संकट और अशान्ति।
श्री अनन्तजिनराज जी, देवेंगे सुख-शान्ति।।४।।
( समाप्त )
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