Vasupujya Bhagwan Chalisa | वासुपूज्य भगवान चालीसा | Vasupujya Chalisa
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Vasupujya Chalisa |
Vasupujya Bhagwan Chalisa (वासुपूज्य भगवान चालीसा) lyrics in Hindi is as given below -
( श्री वासुपूज्य भगवान चालीसा प्रारंभ )
दोहा –
जिनशासन के बारवें ,तीर्थंकर भगवान |
उनके पद में नित नमूँ ,करें सर्व कल्याण ||१||
जन्मभूमि भगवान की, होवे मंगलकार |
चालीसा उनका कहूँ , मन मंदिर में धार ||२||
चौपाई –
जय-जय वासुपूज्य जिन स्वामी, हो स्वामी तुम अंतर्यामी ||१||
सुर,नर,असुर करें तुम सेवा, तुम हो सब देवन के देवा ||२||
चम्पापुर नगरी जगनामी , जहाँ पे जन्मे त्रिभुवन स्वामी ||३||
है प्राचीन बहुत यह नगरी, इन्द्र के द्वारा रचना सगरी ||४||
बावन जनपद में अंग जानो, चम्पापुर रजधानी मानो ||५||
प्रभु के पञ्चकल्याण से पावन, अतः सिद्धभूमी मनभावन ||६||
चार कल्याणक सब ही भू पर, किन्तु एक यह नगरी मनहर ||७||
शास्त्र पुराण हमें बतलाते, भक्त यहाँ वंदन को आते ||८||
वसूपूज्य नृप इस नगरी के, उनकी रानी जयावती ने ||९||
तिथि आषाढ़ कृष्ण षष्ठी में, माँ ने देखे सोलह सपने ||१०||
गर्भ में प्रभु अवतीर्ण हुए जब, इन्द्र के आसन कम्पे तत्क्षण ||११||
पन्द्रह मास रतन की वर्षा, धनद कर रहा हरषा-हरषा ||१२||
फाल्गुन वदि चौदस जब आई, तीन लोक में खुशियाँ छायीं ||१३||
प्रभु की जन्मकल्याणक बेला, स्वर्ग से आया इन्द्र का रेला ||१४||
पञ्च बालयति तीर्थंकर में , प्रथम बालयति ये सुखकारी ||१५||
ब्याह न कर वैरागी बनकर, सिद्ध नमः कह दीक्षा धारी ||१६||
जन्म के दिन ही ले ली दीक्षा , था उद्यान मंदारगिरी का ||१७||
माघ शुक्ल द्वितिया की तिथि में, प्रभु को केवलज्ञान हो गया |१८||
घाती कर्म विनाशा प्रभु ने, अधर विराजे समवसरण में ||१९||
दिव्यध्वनी से जग सम्बोधा , श्री मंदारगिरी पर्वत था ||२०||
पुनः यहीं से मोक्ष पधारे, वासुपूज्य जिनराज हमारे ||२१||
भादों शुक्ला चौदस तिथि थी, प्रभु ने मुक्तिरमा परणी थी ||२२||
वर्तमान में दोनों तीरथ, जिनसंस्कृति की अमिट धरोहर ||२३||
दूर –दूर से यात्री आते , तीर्थवंदना कर हरषाते ||२४||
जयपुर में इक हवामहल है , क्षेत्रद्वार उस शैली पर है ||२५||
मंदिर के ही पूर्व भाग में, दो-दो कीर्तिस्तम्भ साथ हैं ||२६||
सहस्राब्दियां बीत गयी हैं, किन्तु बताते जिनसंस्कृति हैं ||२७||
इनके नीचे सुरंग आती, दो तीर्थों तक जो थी जाती ||२८||
कालचक्र से नष्ट हुआ कुछ, किन्तु जुड़े हैं कई कथानक ||२९||
चम्पापुर का कण-कण पावन, माणिक की प्रतिमा मनभावन ||३०||
हैं प्राचीन चरण जिनवर के, कई मूर्तियां संग में उनके ||३१||
पुरातत्व की कई धरोहर, जिनमंदिर की प्रदक्षिणा में ||३२||
प्रभु महावीर के छ्ब्बिस सौवें ,निर्वाणोत्सव वर्ष के अंदर ||३३||
चम्पापुर जी तीर्थक्षेत्र का, हुआ विकास बहुत ही सुन्दर ||३४||
विद्यमान सीमंधर स्वामी, नूतन जिनमंदिर जगनामी ||३५||
दूजी ओर कलात्मक मंदिर, कांच के सुन्दर दृश्य हैं सुन्दर ||३६||
इकहत्तर फुट ऊंचा भारी, मानस्तम्भ बना सुखकारी ||३७||
चौबिस टोंक हैं तीर्थंकर की, और साथ में जिनमंदिर भी ||३८||
जलमंदिर में कमलासन पर, पन्द्रह फुट खड्गासन प्रभुवर ||३९||
जय-जय वासुपूज्य जिनवर की, चम्पापुर मंदारगिरी की ||४०||
शंभु छंद –
पाँचों कल्याणक से पवित्र, इस भूमि को मेरा वंदन है |
तीरथ की यात्रा हर प्राणी के,मन को करती चन्दन है ||
प्रभु वासुपूज्य की भक्ति ‘इंदु’ निज ज्ञानज्योति को प्रगट करे |
आत्मा पा जावे ऊर्ध्वगती, संसार भवोदधि शीघ्र तरे ||१||
जिनशासन के बारवें ,तीर्थंकर भगवान |
उनके पद में नित नमूँ ,करें सर्व कल्याण ||१||
जन्मभूमि भगवान की, होवे मंगलकार |
चालीसा उनका कहूँ , मन मंदिर में धार ||२||
चौपाई –
जय-जय वासुपूज्य जिन स्वामी, हो स्वामी तुम अंतर्यामी ||१||
सुर,नर,असुर करें तुम सेवा, तुम हो सब देवन के देवा ||२||
चम्पापुर नगरी जगनामी , जहाँ पे जन्मे त्रिभुवन स्वामी ||३||
है प्राचीन बहुत यह नगरी, इन्द्र के द्वारा रचना सगरी ||४||
बावन जनपद में अंग जानो, चम्पापुर रजधानी मानो ||५||
प्रभु के पञ्चकल्याण से पावन, अतः सिद्धभूमी मनभावन ||६||
चार कल्याणक सब ही भू पर, किन्तु एक यह नगरी मनहर ||७||
शास्त्र पुराण हमें बतलाते, भक्त यहाँ वंदन को आते ||८||
वसूपूज्य नृप इस नगरी के, उनकी रानी जयावती ने ||९||
तिथि आषाढ़ कृष्ण षष्ठी में, माँ ने देखे सोलह सपने ||१०||
गर्भ में प्रभु अवतीर्ण हुए जब, इन्द्र के आसन कम्पे तत्क्षण ||११||
पन्द्रह मास रतन की वर्षा, धनद कर रहा हरषा-हरषा ||१२||
फाल्गुन वदि चौदस जब आई, तीन लोक में खुशियाँ छायीं ||१३||
प्रभु की जन्मकल्याणक बेला, स्वर्ग से आया इन्द्र का रेला ||१४||
पञ्च बालयति तीर्थंकर में , प्रथम बालयति ये सुखकारी ||१५||
ब्याह न कर वैरागी बनकर, सिद्ध नमः कह दीक्षा धारी ||१६||
जन्म के दिन ही ले ली दीक्षा , था उद्यान मंदारगिरी का ||१७||
माघ शुक्ल द्वितिया की तिथि में, प्रभु को केवलज्ञान हो गया |१८||
घाती कर्म विनाशा प्रभु ने, अधर विराजे समवसरण में ||१९||
दिव्यध्वनी से जग सम्बोधा , श्री मंदारगिरी पर्वत था ||२०||
पुनः यहीं से मोक्ष पधारे, वासुपूज्य जिनराज हमारे ||२१||
भादों शुक्ला चौदस तिथि थी, प्रभु ने मुक्तिरमा परणी थी ||२२||
वर्तमान में दोनों तीरथ, जिनसंस्कृति की अमिट धरोहर ||२३||
दूर –दूर से यात्री आते , तीर्थवंदना कर हरषाते ||२४||
जयपुर में इक हवामहल है , क्षेत्रद्वार उस शैली पर है ||२५||
मंदिर के ही पूर्व भाग में, दो-दो कीर्तिस्तम्भ साथ हैं ||२६||
सहस्राब्दियां बीत गयी हैं, किन्तु बताते जिनसंस्कृति हैं ||२७||
इनके नीचे सुरंग आती, दो तीर्थों तक जो थी जाती ||२८||
कालचक्र से नष्ट हुआ कुछ, किन्तु जुड़े हैं कई कथानक ||२९||
चम्पापुर का कण-कण पावन, माणिक की प्रतिमा मनभावन ||३०||
हैं प्राचीन चरण जिनवर के, कई मूर्तियां संग में उनके ||३१||
पुरातत्व की कई धरोहर, जिनमंदिर की प्रदक्षिणा में ||३२||
प्रभु महावीर के छ्ब्बिस सौवें ,निर्वाणोत्सव वर्ष के अंदर ||३३||
चम्पापुर जी तीर्थक्षेत्र का, हुआ विकास बहुत ही सुन्दर ||३४||
विद्यमान सीमंधर स्वामी, नूतन जिनमंदिर जगनामी ||३५||
दूजी ओर कलात्मक मंदिर, कांच के सुन्दर दृश्य हैं सुन्दर ||३६||
इकहत्तर फुट ऊंचा भारी, मानस्तम्भ बना सुखकारी ||३७||
चौबिस टोंक हैं तीर्थंकर की, और साथ में जिनमंदिर भी ||३८||
जलमंदिर में कमलासन पर, पन्द्रह फुट खड्गासन प्रभुवर ||३९||
जय-जय वासुपूज्य जिनवर की, चम्पापुर मंदारगिरी की ||४०||
शंभु छंद –
पाँचों कल्याणक से पवित्र, इस भूमि को मेरा वंदन है |
तीरथ की यात्रा हर प्राणी के,मन को करती चन्दन है ||
प्रभु वासुपूज्य की भक्ति ‘इंदु’ निज ज्ञानज्योति को प्रगट करे |
आत्मा पा जावे ऊर्ध्वगती, संसार भवोदधि शीघ्र तरे ||१||
( समाप्त )
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