Jain Hanuman Chalisa | श्री शैल चालीसा | Hanuman Chalisa
Jain Chalisa - Shri Shail Chalisa (Jain Hanuman Chalisa) [श्री शैल चालीसा (जैन हनुमान चालीसा)] full lyrics in Hindi available for Jain people
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Shri Shail Chalisa ( Jain Hanuman Chalisa ) full lyrics in Hindi is as given below -
श्री शैल चालीसा (जैन हनुमान चालीसा)
(श्री जैन हनुमान चालीसा प्रारंभ)
दोहा -
शीश झुका कर जिनचरण, नमूँ पंचगुरुदेव।
सिद्ध अनन्तानन्तप्रम, करें भ्रमण भव छेव।।१।।
चालीसा श्रीशैल का, शक्ति प्रदायक जान।
मांगीतुंगी से मिला, जिनको पद निर्वाण।।२।।
उनका ही हनुमान यह, नाम हुआ विख्यात।
नमस्कार कर उन चरण, पाऊँ आतम ख्याति।।३।।
चौपाई -
जय जय प्रभु श्री शैल महाना, जय बजरंगबली हनुमाना।।१।।
जय प्रभु कामदेव परधाना, वानरवंशी रूप सुहाना।।२।।
सती अंजना मात तुम्हारी, तुम सा सुत पाकर बलिहारी।।३।।
पवनञ्जय जी पिता कहाये, पाकर पुत्र बहुत हरषाये।।४।।
नव लख वर्ष पूर्व जन्मे थे, रामचन्द्र के भक्त बने थे।।५।।
जन्म से ही बलशाली इतने, पर्वत चूर हुआ गिरने से।।६।।
एक बार का है घटनाक्रम, सती अंजना का टूटा भ्रम।।७।।
जंगल में उसने सुत जन्मा, विकट परिस्थितियों का क्षण था।।८।।
तभी अंजना के मामा ने, कहा चलो तुम मेरे घर में।।९।।
दोनों को लेकर विमान में, हनुरुह द्वीप चले द्रुतगति से।।१०।।
तभी बीच में पुत्र गिर गया, मातृशक्ति का भाव भर गया।।११।।
नीचे उतरा वह विमान जब, देखा बालक खेल रहा तब।।१२।।
उसको चोट लगी नहिं किंचित्, पर्वत शिला चूर थी प्रत्युत् ।।१३।।
खुशियों का तब पार नहीं था, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं था।।१४।।
देख अपूरब घटना ऐसी, जय बोली वजरंगबली की।।१५।।
तुम सा सुत पाए हर माता, जो बन गया जगत का त्राता।।१६।।
रामचन्द्र की रामायण के, प्रमुख पात्र बनकर चमके थे।।१७।।
विद्याधर मानव की काया, समय-समय पर दिखती माया।।१८।।
कभी दीर्घ-लघु काय बनाते, कार्य हेतु नभ में उड़ जाते।।१९।।
राम लखन के भक्त कहाये, सीता माता के गुण गाये।।२०।।
रामचन्द्र वनवास काल में, सीता के अपहरणकाल में।।२१।।
जब रावण से युद्ध हुआ था, लंका में संघर्ष छिड़ा था।।२२।।
शक्ति अमोघ लगी लक्ष्मण को, गये हनुमान अयोध्यापुरि को।।२३।।
सती विशल्या को ले आए, संजीवनी नाम जन गाएं।।२४।।
ज्यों ही पास विशल्या पहुँची, दूर हुई लक्ष्मण की शक्ती।।२५।।
पुन: युद्ध में विजय हो गई, राम लखन की जीत हो गई।।२६।।
सीता ने पाया निज पति को, जन्म दिया फिर सुत लवकुश को।।२७।।
राम भक्त का एक लक्ष्य था, राम सिवा न उन्हें कुछ प्रिय था।।२८।।
थे सुग्रीव प्रधान साथ में, वानर सेना सदा साथ में।।२९।।
वानर सम नहिं मुख था उनका, मात्र मुकुट में वानर चिन्ह था।।३०।।
क्योंकि वंश था उनका वानर, वे थे कामदेव अति सुन्दर।।३१।।
आगे चलकर रामचन्द्र जब, दीक्षा ले तप हेतु गए वन।।३२।।
उनके संग हनुमान भी जा कर, दीक्षित हो पाया सुखसागर।।३३।।
ग्रन्थ पुराणों में वर्णन है, तुंगीगिरि का जहाँ कथन है।।३४।।
राम हनू सुग्रीव सुडीलं, गव गवाख्य नील महानीलं।।३५।।
तुंगीगिरि से मोक्ष पधारे, निन्यानवे कोटि मुनि सारे।।३६।।
इसीलिए हनुमान प्रभू को, माना है भगवान सभी ने।।३७।।
उनकी भक्ति करे जो प्राणी, मनवांछित फल पाते ज्ञानी।।३८।।
ग्रह बाधा सब भग जाती है, शारीरिक शक्ती आती है।।३९।।
श्री वजरंगबली हनुमाना, नमूँ नमूँ श्री शैल प्रधाना।।४०।।
दोहा -
वीर संवत् पच्चीस सौ, पच्चिस वर्ष महान।
प्रथम ज्येष्ठ मावसतिथी, की यह रचना जान।।१।।
ज्ञानमती मातेश्वरी, गणिनी प्रमुख महान।
उनकी शिष्या चन्दनामती आर्यिका नाम।।२।।
काय आत्म द्वय शक्ति की, वृद्धि हेतु गुणगान।
करो सभी चालीस दिन, चालीसा हनुमान।।३।।
(समाप्त)
(श्री जैन हनुमान चालीसा प्रारंभ)
दोहा -
शीश झुका कर जिनचरण, नमूँ पंचगुरुदेव।
सिद्ध अनन्तानन्तप्रम, करें भ्रमण भव छेव।।१।।
चालीसा श्रीशैल का, शक्ति प्रदायक जान।
मांगीतुंगी से मिला, जिनको पद निर्वाण।।२।।
उनका ही हनुमान यह, नाम हुआ विख्यात।
नमस्कार कर उन चरण, पाऊँ आतम ख्याति।।३।।
चौपाई -
जय जय प्रभु श्री शैल महाना, जय बजरंगबली हनुमाना।।१।।
जय प्रभु कामदेव परधाना, वानरवंशी रूप सुहाना।।२।।
सती अंजना मात तुम्हारी, तुम सा सुत पाकर बलिहारी।।३।।
पवनञ्जय जी पिता कहाये, पाकर पुत्र बहुत हरषाये।।४।।
नव लख वर्ष पूर्व जन्मे थे, रामचन्द्र के भक्त बने थे।।५।।
जन्म से ही बलशाली इतने, पर्वत चूर हुआ गिरने से।।६।।
एक बार का है घटनाक्रम, सती अंजना का टूटा भ्रम।।७।।
जंगल में उसने सुत जन्मा, विकट परिस्थितियों का क्षण था।।८।।
तभी अंजना के मामा ने, कहा चलो तुम मेरे घर में।।९।।
दोनों को लेकर विमान में, हनुरुह द्वीप चले द्रुतगति से।।१०।।
तभी बीच में पुत्र गिर गया, मातृशक्ति का भाव भर गया।।११।।
नीचे उतरा वह विमान जब, देखा बालक खेल रहा तब।।१२।।
उसको चोट लगी नहिं किंचित्, पर्वत शिला चूर थी प्रत्युत् ।।१३।।
खुशियों का तब पार नहीं था, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं था।।१४।।
देख अपूरब घटना ऐसी, जय बोली वजरंगबली की।।१५।।
तुम सा सुत पाए हर माता, जो बन गया जगत का त्राता।।१६।।
रामचन्द्र की रामायण के, प्रमुख पात्र बनकर चमके थे।।१७।।
विद्याधर मानव की काया, समय-समय पर दिखती माया।।१८।।
कभी दीर्घ-लघु काय बनाते, कार्य हेतु नभ में उड़ जाते।।१९।।
राम लखन के भक्त कहाये, सीता माता के गुण गाये।।२०।।
रामचन्द्र वनवास काल में, सीता के अपहरणकाल में।।२१।।
जब रावण से युद्ध हुआ था, लंका में संघर्ष छिड़ा था।।२२।।
शक्ति अमोघ लगी लक्ष्मण को, गये हनुमान अयोध्यापुरि को।।२३।।
सती विशल्या को ले आए, संजीवनी नाम जन गाएं।।२४।।
ज्यों ही पास विशल्या पहुँची, दूर हुई लक्ष्मण की शक्ती।।२५।।
पुन: युद्ध में विजय हो गई, राम लखन की जीत हो गई।।२६।।
सीता ने पाया निज पति को, जन्म दिया फिर सुत लवकुश को।।२७।।
राम भक्त का एक लक्ष्य था, राम सिवा न उन्हें कुछ प्रिय था।।२८।।
थे सुग्रीव प्रधान साथ में, वानर सेना सदा साथ में।।२९।।
वानर सम नहिं मुख था उनका, मात्र मुकुट में वानर चिन्ह था।।३०।।
क्योंकि वंश था उनका वानर, वे थे कामदेव अति सुन्दर।।३१।।
आगे चलकर रामचन्द्र जब, दीक्षा ले तप हेतु गए वन।।३२।।
उनके संग हनुमान भी जा कर, दीक्षित हो पाया सुखसागर।।३३।।
ग्रन्थ पुराणों में वर्णन है, तुंगीगिरि का जहाँ कथन है।।३४।।
राम हनू सुग्रीव सुडीलं, गव गवाख्य नील महानीलं।।३५।।
तुंगीगिरि से मोक्ष पधारे, निन्यानवे कोटि मुनि सारे।।३६।।
इसीलिए हनुमान प्रभू को, माना है भगवान सभी ने।।३७।।
उनकी भक्ति करे जो प्राणी, मनवांछित फल पाते ज्ञानी।।३८।।
ग्रह बाधा सब भग जाती है, शारीरिक शक्ती आती है।।३९।।
श्री वजरंगबली हनुमाना, नमूँ नमूँ श्री शैल प्रधाना।।४०।।
दोहा -
वीर संवत् पच्चीस सौ, पच्चिस वर्ष महान।
प्रथम ज्येष्ठ मावसतिथी, की यह रचना जान।।१।।
ज्ञानमती मातेश्वरी, गणिनी प्रमुख महान।
उनकी शिष्या चन्दनामती आर्यिका नाम।।२।।
काय आत्म द्वय शक्ति की, वृद्धि हेतु गुणगान।
करो सभी चालीस दिन, चालीसा हनुमान।।३।।
(समाप्त)
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