Mallinath Chalisa | Mallinath Bhagwan Chalisa |Tirthankar Chalisa
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Mallinath Chalisa - Tirthankar Chalisa |
Mallinath Bhagwan Chalisa ( श्री मल्लिनाथ चालीसा ) full lyrics in Hindi -
( श्री मल्लिनाथ भगवान भगवान चालीसा प्रारंभ )
दोहा -
शान्ति-कुन्थु-अरनाथ को, वंदन शत-शत बार।
पुन: मल्लिजिनराज के, चरणानि करूँ प्रणाम।।१।।
काम-मोह-यममल्ल के, जेता आप प्रसिद्ध।
इसीलिए तुम चरण में, नमस्कार है नित्य।।२।।
हे भगवन्! दो शक्ति मम आत्मा निर्मल होय।
जग के सब दुख दूर हों, सुख की प्राप्ती होय।।३।।
चौपाई -
जय प्रभु मल्लिनाथ की जय हो, मेरे दुष्कर्मों का क्षय हो।।१।।
भरतक्षेत्र में बंग देश है, उसमें इक मिथिलानगरी है।।२।।
वहाँ कुंभ नामक महाराजा, महाभाग्यशाली थे राजा।।३।।
उनकी रानी प्रजावती थीं, वे भी बहुत ही पुण्यवती थीं।।४।।
चैत्र शुक्ल एकम् शुभतिथि थी, माता सोलह स्वप्न देखतीं।।५।।
पुन: व्यतीत हुए नौ महिने, तब श्री मल्लिनाथ जी जन्मे।।६।।
वह थी मगसिर सुदि एकादशि, उस दिन था नक्षत्र अश्विनी।।७।।
तीन लोक के नाथ थे जन्मे, तीन ज्ञान से वे संयुत थे।।८।।
पचपन सहस वर्ष थी आयू, पच्चिस धनुष देह ऊँचाई।।९।।
वर्ण आपका सुन्दर ऐसा, बिल्कुल सोने जैसा लगता।।१०।।
युवा अवस्था प्राप्त हुई जब, तब क्या घटना घटी सुनो! अब।।११।।
एक दिन प्रभु ने क्या देखा ? देख उसे क्या मन में सोचा ?।।१२।।
मिथिलानगरी खूब सजी है, मेरे ब्याह की तैयारी है।।१३।।
वाद्य ध्वनी होरही मनोहर, मंगलगान करें नारी-र।।१४।।
देखा यह सब ज्यों ही प्रभु ने, पूर्व जन्म आ गया स्मरण में।।१५।।
अपराजित नामक विमान में, मैं था सुन्दर देवरूप में।।११६।।
मुझे नहीं यह ब्याह रचाना, असिधाराव्रत है अपनाना।।१७।।
वीतरागता सच्चा पथ है, नहिं विवाह में विंâचित् सुख है।।१८।।
यह विचार करते ही तत्क्षण, लौकान्तिक सुर आए वहाँ पर।।१९।।
सबने स्तुति की प्रभुवर की, उनके वैरागी भावों की।।२०।।
इन्द्र तुरत पालकि ले आए, उस पर प्रभु जी को पधराए।।२१।।
पहुँचे श्वेत विपिन[१] में प्रभु जी, वह थी मगसिर सुदि एकादशि।।२२।।
प्रभु ने सिद्धों की साक्षी से, नग्न दिगम्बर दीक्षा ले ली।।२३।।
दीक्षा के अन्तर्मुहूर्त में, प्रभु जी चौथे ज्ञान[२] सहित थे।।२४।।
प्रथम पारणा मिथिला के ही, राजा नंदिषेण के घर में।।२५।।
छह दिन बीत गए दीक्षा के, पुन: गए प्रभु दीक्षावन में।।२६।।
वहाँ अशोक वृक्ष के नीचे, प्रभु जी ध्यानमग्न हो तिष्ठे।।२७।।
चार घातिया कर्म नशे जब, प्रगटा केवलज्ञान सूर्य तब।।२८।।
आपने सारे जग को अपनी, किरण प्रभा से किया प्रकाशित।।२९।।
कलश चिन्ह है प्रभो! आपका, जो जन-जन का मंगल करता।।३०।।
आयु अन्त में मल्लिनाथ जी, पहुँच गए सम्म्ेदशिखर जी।।३१।।
फाल्गुन शुक्ला पंचमि तिथि में, मुक्तिधाम पाया प्रभुवर ने।।३२।।
देवों ने स्वर्गों से आकर, उत्सव खूब मनाया वहाँ पर।।३३।।
ऐसे पंचकल्याणक अधिपति, मल्लिनाथ प्रभु द्वितीय बालयति।।३४।।
इन प्रभु की भक्ती दुख हरती, तन-मन की सब बाधा हरती।।३५।।
ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो भक्ती से नहिं मिलती है।।३६।।
लेकिन इतनी शर्त जरूरी, होनी चाहिए सच्ची भक्ती।।३७।।
पूर्ण समर्पण भाव यदी है, तब तो कुछ भी दुर्लभ नहिं है।।३८।।
प्रभु! हम माँगें आज आपसे, भक्ति-समर्पण ये गुण दे दो।।३९।।
इससे ही भवनाव तिरेगी, तभी ‘‘सारिका’’ मुक्ति मिलेगी।।४०।।
शंभु छंद -
मल्लिनाथ भगवान के, चालीसा का पाठ।
त्रयमाल से विरहित करे, निर्मलता मिल जाए।।१।।
कलियुग की ब्राह्मी सदृश, गणिनी मात महान।
प्रथम बालसति ख्यात हैं, ज्ञानमती जी मात।।२।।
शिष्या उनकी चन्दना-मती मात विख्यात।
इन्हें ‘‘प्रेरणापुंज’’ यह, पदवी हुई है प्राप्त।।३।।
मिली प्रेरणा जब मुझे, तभी लिखा यह पाठ।
इसको पढ़कर प्राप्त हों, सांसारिक सुख-ठाठ।।४।।
शान्ति-कुन्थु-अरनाथ को, वंदन शत-शत बार।
पुन: मल्लिजिनराज के, चरणानि करूँ प्रणाम।।१।।
काम-मोह-यममल्ल के, जेता आप प्रसिद्ध।
इसीलिए तुम चरण में, नमस्कार है नित्य।।२।।
हे भगवन्! दो शक्ति मम आत्मा निर्मल होय।
जग के सब दुख दूर हों, सुख की प्राप्ती होय।।३।।
चौपाई -
जय प्रभु मल्लिनाथ की जय हो, मेरे दुष्कर्मों का क्षय हो।।१।।
भरतक्षेत्र में बंग देश है, उसमें इक मिथिलानगरी है।।२।।
वहाँ कुंभ नामक महाराजा, महाभाग्यशाली थे राजा।।३।।
उनकी रानी प्रजावती थीं, वे भी बहुत ही पुण्यवती थीं।।४।।
चैत्र शुक्ल एकम् शुभतिथि थी, माता सोलह स्वप्न देखतीं।।५।।
पुन: व्यतीत हुए नौ महिने, तब श्री मल्लिनाथ जी जन्मे।।६।।
वह थी मगसिर सुदि एकादशि, उस दिन था नक्षत्र अश्विनी।।७।।
तीन लोक के नाथ थे जन्मे, तीन ज्ञान से वे संयुत थे।।८।।
पचपन सहस वर्ष थी आयू, पच्चिस धनुष देह ऊँचाई।।९।।
वर्ण आपका सुन्दर ऐसा, बिल्कुल सोने जैसा लगता।।१०।।
युवा अवस्था प्राप्त हुई जब, तब क्या घटना घटी सुनो! अब।।११।।
एक दिन प्रभु ने क्या देखा ? देख उसे क्या मन में सोचा ?।।१२।।
मिथिलानगरी खूब सजी है, मेरे ब्याह की तैयारी है।।१३।।
वाद्य ध्वनी होरही मनोहर, मंगलगान करें नारी-र।।१४।।
देखा यह सब ज्यों ही प्रभु ने, पूर्व जन्म आ गया स्मरण में।।१५।।
अपराजित नामक विमान में, मैं था सुन्दर देवरूप में।।११६।।
मुझे नहीं यह ब्याह रचाना, असिधाराव्रत है अपनाना।।१७।।
वीतरागता सच्चा पथ है, नहिं विवाह में विंâचित् सुख है।।१८।।
यह विचार करते ही तत्क्षण, लौकान्तिक सुर आए वहाँ पर।।१९।।
सबने स्तुति की प्रभुवर की, उनके वैरागी भावों की।।२०।।
इन्द्र तुरत पालकि ले आए, उस पर प्रभु जी को पधराए।।२१।।
पहुँचे श्वेत विपिन[१] में प्रभु जी, वह थी मगसिर सुदि एकादशि।।२२।।
प्रभु ने सिद्धों की साक्षी से, नग्न दिगम्बर दीक्षा ले ली।।२३।।
दीक्षा के अन्तर्मुहूर्त में, प्रभु जी चौथे ज्ञान[२] सहित थे।।२४।।
प्रथम पारणा मिथिला के ही, राजा नंदिषेण के घर में।।२५।।
छह दिन बीत गए दीक्षा के, पुन: गए प्रभु दीक्षावन में।।२६।।
वहाँ अशोक वृक्ष के नीचे, प्रभु जी ध्यानमग्न हो तिष्ठे।।२७।।
चार घातिया कर्म नशे जब, प्रगटा केवलज्ञान सूर्य तब।।२८।।
आपने सारे जग को अपनी, किरण प्रभा से किया प्रकाशित।।२९।।
कलश चिन्ह है प्रभो! आपका, जो जन-जन का मंगल करता।।३०।।
आयु अन्त में मल्लिनाथ जी, पहुँच गए सम्म्ेदशिखर जी।।३१।।
फाल्गुन शुक्ला पंचमि तिथि में, मुक्तिधाम पाया प्रभुवर ने।।३२।।
देवों ने स्वर्गों से आकर, उत्सव खूब मनाया वहाँ पर।।३३।।
ऐसे पंचकल्याणक अधिपति, मल्लिनाथ प्रभु द्वितीय बालयति।।३४।।
इन प्रभु की भक्ती दुख हरती, तन-मन की सब बाधा हरती।।३५।।
ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो भक्ती से नहिं मिलती है।।३६।।
लेकिन इतनी शर्त जरूरी, होनी चाहिए सच्ची भक्ती।।३७।।
पूर्ण समर्पण भाव यदी है, तब तो कुछ भी दुर्लभ नहिं है।।३८।।
प्रभु! हम माँगें आज आपसे, भक्ति-समर्पण ये गुण दे दो।।३९।।
इससे ही भवनाव तिरेगी, तभी ‘‘सारिका’’ मुक्ति मिलेगी।।४०।।
शंभु छंद -
मल्लिनाथ भगवान के, चालीसा का पाठ।
त्रयमाल से विरहित करे, निर्मलता मिल जाए।।१।।
कलियुग की ब्राह्मी सदृश, गणिनी मात महान।
प्रथम बालसति ख्यात हैं, ज्ञानमती जी मात।।२।।
शिष्या उनकी चन्दना-मती मात विख्यात।
इन्हें ‘‘प्रेरणापुंज’’ यह, पदवी हुई है प्राप्त।।३।।
मिली प्रेरणा जब मुझे, तभी लिखा यह पाठ।
इसको पढ़कर प्राप्त हों, सांसारिक सुख-ठाठ।।४।।
( समाप्त )
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